August 10, 2007

Baatein

कुछ कहते कहते रुक कर एक बार आस पास देख लेती हूँ कि कोई सुनने वाला तो है ना, अब अकेले बोलते चले जाने से डर लगता हैपता नही कब से ये किसी सुनने वाले की ज़रूरत पड़ने लगी हैऔर ये भी नहीं पता की कब से ये बोलने सुनने की आदत पड़ गयी हैबचपन में आराम से चुप रह लेती थी घंटो तककुछ साल पहले तक भीपर अब बोले बिना घबराहट होती है

चलो, जो भी हो, ये भरोसा तो है थोडा बहुत की तुम तो सुन ही लोगे, और तुम ज़्यादातर समझ भी लेते होये भी यकीन है कि नही भी समझोगे तो कुछ बुरा नही समझोगे, मुझे पागल नही समझोगेपहले तो मज़ा आता था जब कोई पागल कहता था, क्योंकी पता लग जाता था कि उनको मेरी बात समझ में नही रही हैअब तो सभी ऐसे पेश आते हैं तो में डर जाती हूँतुम रहना यार, कुछ और नही चाहिऐ, बस बातें करेंगे

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